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10 April 2023: दिन की पांच बड़ी ख़बरें 'Top 5 News Of The Day

 1. West Bengal Violence: ममता बनर्जी ने हिंसा को लेकर लगाए BJP पर गंभीर आरोप

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शिबपुर-रिषड़ा हिंसा को लेकर सोमवार (10 अप्रैल) को बीजेपी पर हमला बोला है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी के कारण घटना हुई. बीजेपी ने अपनी मर्जी से बिना किसी अनुमति के समय बदल दिया. हाई कोर्ट ने कहा था कि आप 6 तारीख तक कुछ नहीं कह सकते इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा. पुलिस ने भी इन्हें अनुमति नहीं दी थी. 

उन्होंने कहा कि मीटिंग दोपहर में होने वाली थी, लेकिन उन्होंने लोगों पर हमला करने के लिए जानबूझकर नमाज के समय का इंतजार किया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को एएलएस एम्बुलेंस सेवाओं का शुभारंभ किया है. उन्होंने कहा कि हमारे यहां के राज्यसभा सांसदों के पैसों से हमने 35 लाइफ सेविंग एंबुलेंस सेवा शुरू की है, जिसमें आईसीयू में मिलने वाली सारी सुविधाएं हैं. 

अब फैक्ट-फाइंडिंग टीम की क्या जरूरत?'

सीएम ने कहा कि अब जब स्थिति नियंत्रण में आ गई है तो बीजेपी हिंसा को और भड़काने के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम भेज रही है. जब सामान्य स्थिति बहाल हो गई है तो फैक्ट-फाइंडिंग टीम की क्या जरूरत है. ममता बनर्जी ने इससे पहले भी राज्य में रामनवमी पर हुई हिंसा के लिए बीजेपी को कसूरवार ठहराया था. 

बीजेपी पर लगाया था गुंडे लाने का आरोप

ममता बनर्जी ने कहा था कि बीजेपी ने गुंडों को भेजकर ये हिंसा करवाई थी. हिंसा बंगाल की संस्कृति नहीं है. बीजेपी बाहर से भाड़े के गुंडे लाई थी. यह साम्प्रदायिक हिंसा नहीं, आपराधिक हिंसा है. वीडियो में रामनवमी की रैली में बंदूक लिए हुए लोगों को देखा गया था. वहीं बीजेपी का कहना है कि बंगाल में हिंदू खतरे में हैं और ममता बनर्जी तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं.

2. MIB Recruitment 2023: सूचना व प्रसारण मंत्रालय में 75 यंग प्रोफेशनल (कंटेंट क्रिएटर्स) की भर्ती, सैलरी 60 हजार

सूचना व प्रसारण मंत्रालय में सरकारी नौकरी या कंटेंट/जर्नलिज्म में सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों युवाओं के लिए काम की खबर। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा यंग प्रोफेशल की भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए जा रहे हैं। मंत्रालय द्वारा रोजगार समाचार में प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार कुल 75 यंग प्रोफेशनल की संविदा के आधार पर भर्ती की जानी है। संविदा की अवधि एक वर्ष होगी, जिसे उम्मीदवारों की कार्य-प्रदर्शन के आधार पर अधिकतम दो वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है। निर्धारित प्रक्रिया से चयनित उम्मीदवारों को प्रिंट, टीवी, रेडियो, ऑनलाइन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए कंटेंट किएट या ग्राफिक डिजाइन करना होगा। इन उम्मीदवारों को 60 हजार रुपये प्रतिमाह सैलरी दी जाएगी। 

MIB Recruitment 2023: कहां और कैसे करें आवेदन?

सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा की जा रही यंग प्रोफेशल की भर्ती के लिए आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन है। उम्मीदवार मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट, mib.gov.in पर वेकेंसी सेक्शन में एक्टिव किए लिंक या नीचे दिए डायरेक्ट लिंक से एमआइबी भर्ती 2023 अधिसूचना डाउनलोड कर सकते हैं और ऑनलाइन अप्लीकेशन सबमिट कर सकते हैं।

कौन कर सकता है आवेदन?

एमआइबी यंग प्रोफेशनल भर्ती के लिए वे ही उम्मीदवार आवेदन के पात्र हैं जिन्होंने किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या किसी अन्य उच्च शिक्षा संस्थान से जर्नलिज्म या मास कम्यूनिकेशन या विजुअल कम्यूनिकेश या इंफॉर्मेशन आर्ट्स या एनिमेशन एण्ड डिजाइनिंग या लिट्रेचर एवं क्रिएटिव राइंटिंग में कम से कम दो वर्ष की अवधि की मास्टर्स डिग्री या डिप्लोमा लिया हो। साथ ही, उम्मीदवारों के पास सम्बन्धित कार्य का कम से कम दो वर्ष का अनुभव होना चाहिए। उम्मीदवारों की आयु आवेदन की आखिरी तारीख यानी 8 मई 2023 को 32 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।

3. ट्विटर ने BBC की निष्पक्षता पर उठाए सवाल, सरकारी पैसों से चलने वाली मीडिया का दिया लेबल

एलन मस्क द्वारा ट्विटर का अधिग्रहण करने के बाद से हर दूसरे दिन कंपनी कुछ न कुछ नई घोषणा कर देती है, जो सुर्खी बन जाती है। इस बीच ट्विटर ने अब बीबीसी को लेकर एक ऐसा कदम उठाया जिसके बाद हंगामा छिड़ गया। 

दरअसल, सोशल मीडिया कंपनी ने ब्रॉडकास्टर को "सरकार द्वारा वित्तपोषित मीडिया" (Government funded media) संगठन के रूप में ट्विटर पर लेबल दे दिया है, जिसके बाद बीबीसी के साथ उसका विवाद खड़ा हो गया। ट्विटर द्वारा बीबीसी को गोल्ड टिक दिया गया है। ट्विटर के इस कदम से बीबीसी की निष्पक्षता पर भी सवाल उठ गए हैं।

बीबीसी ने दिया ये बयान

ट्विटर द्वारा लेबल दिए जाने के बाद ब्रिटेन के राष्ट्रीय प्रसारक बीबीसी ने इसके खिलाफ तुरंत विरोध जताया। सीएनएन के अनुसार,  ने रिपोर्ट किया। मीडिया कंपनी ने इस कदम का जवाब देते हुए कहा कि वो गोल्ड टिक (BBC Gold Tick) को लेकर ट्विटर से बात कर रही है और इसे जल्द से जल्द ठीक कर लिया जाएगा। मीडिया कंपनी ने कहा कि हम स्वतंत्र है और हमेशा से रहे हैं।

मस्क का तंज

एलन मस्क ने भी बीबीसी पर तंज कसा है। उन्होंने कहा, ''हमें संपादकीय प्रभाव पर और अधिक काम करने की  आवश्यकता है, क्योंकि यह बहुत अलग होता है। मैं वास्तव में नहीं सोचता कि बीबीसी किसी अन्य सरकारी वित्तपोषित मीडिया की तरह पक्षपाती है, लेकिन यह एकदम नहीं है, यह दावा करना बीबीसी की मूर्खता है।'' मस्क ने कहा कि इस मामले में मामूली सरकारी प्रभाव कहना सटीक होगा।


4. कोरोना के खिलाफ नई जंग लड़ने के लिए देशभर के अस्पतालों में हो रही मॉक ड्रिल

देश में कोरोना के मामलों में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है। पिछले 24 घंटे में भी कोरोना के 5,880 नए मामले दर्ज किए गए और सक्रिय मामलों की संख्या बढ़कर 35,199 हो गई है। बढ़ते नए मामलों के चलते केंद्र सरकार भी एक्शन मोड में आ गई है। इस बीच, स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर के अस्पतालों में तैयारियों की समीक्षा करने के लिए आज और मंगलवार को राष्ट्रव्यापी मॉक ड्रिल की घोषणा की है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के अलावा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री भी अपने राज्य के अस्पतालों में मॉक ड्रिल की निगरानी करेंगे। वहीं, जिला स्वास्थ्य विभाग भी कोरोना से निपटने की क्षमता का विश्लेषण करेंगे। देशभर में कोरोना के मामलों में तेजी देखी जा रही है। बीते 24 घंटों में कोरोना के एक्टिव केस बढ़कर 35,199 हो गए हैं। वहीं, 5,880 नए मामले भी दर्ज किए गए हैं।

5. 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, जानिए कब 'खत्म' हो जाती है बोलने की आजादी?


पिछले 15 दिनों से अभिव्यक्ति की आजादी का मामला (फ्रीडम ऑफ स्पीच) चर्चा का विषय बना हुआ है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दूसरी बार सख्ती दिखाई है. पहला मामला हेट स्पीच से जुड़ा था. और ताज़ा जुड़ा है केरल के एक न्यूज़ चैनल पर बैन से. पिछले मामले में तो सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नपुंसक तक कह दिया था. वहीं न्यूज चैनल बैन के मामले में कहा गया है कि अगर किसी मीडिया संस्थान  की कवरेज या राय में सरकार की आलोचना की जाती है. तो इसे देश विरोधी नहीं माना जाएगा. 

मीडिया के सवाल उठाने के अधिकार पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश विरोध जैसे शब्दों के इस्तेमाल करने पर भी सख्त टिप्पणी की है. 

क्या है पूरा मामला 

ताज़ा मामला केरल से चलने वाले चैनल वन से जुड़ा हुआ है. इस मलयाली न्यूज़ चैनल पर बैन लगा दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने ये बैन हटा दिया है. इस बैन का हटना प्रेस की स्वतंत्रता के लिहाज से बेहद ही अहम माना जा रहा है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार की आलोचना से जुड़ी ख़बर चलाना या सरकार की आलोचना करना देश विरोधी नहीं है. कहा ये भी गया है कि ऐसी क्रिटिकल कवरेज को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताकर किसी मीडिया संस्थान के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती.  

आगे ये भी कहा गया कि इस तरह से किसी मीडिया चैनल के सिक्योरिटी क्लीयरेंस पर रोक नहीं लगाई जा सकती. मीडिया अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र है. ओपिनियन रखने की स्वतंत्रता को देश की सुरक्षा के नाम पर रोकने से अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की स्वतंत्रता पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. 

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि चैनल के शेयर होलडर्स के जमाते इस्लामी के साथ लिंक होने जैसी हवा-हवाई बातों की वजह से भी चैनल पर बैन सही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने तो केरल हाई कोर्ट के फैसले पर भी अचरज जताया. एससी ने कहा कि केरल हाई कोर्ट को बंद लिफ़ाफ़े (सील्ड कवर) में जो जानकारी दी गई थी उसके बावजूद केरल हाई कोर्ट ने चैनल पर बैन को सही कैसे ठहराया? 

आखिर क्या है बंद लिफाफे (सील्ड कवर) 

इस टर्म को अदालती कार्रवाई के दौरान इस्तेमाल किया जाता है. यह एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे सरकार दूसरे पक्ष के साथ साझा  नहीं करना चाहती. आमतौर पर इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर दिया जाता है. सीलबंद लिफाफे में दी गई जानकारी सार्वजनिक होने से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है.

कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट खुद ही सीलबंद रिपोर्ट मांगती है. वहीं कई बार सरकार और एजेंसियां भी सीलबंद कवर कोर्ट को सौंपती हैं. इसमें जो जानकारी दी जाती है वो अन्य पक्षों या पार्टियों को तब तक नहीं बताई जाती, जब तक कोर्ट खुद से ऐसा करने की नहीं कहती. 

क्योंकि इस लिफाफे की जो जानकारी कोर्ट में पेश की गई है उसके बारे में दूसरे पक्ष को नहीं पता होता इसलिए मामले में शामिल अन्य पार्टियां अपना बचाव करने के लिए डॉक्यूमेंट के दावों के विरोध में कोई तर्क नहीं दे पाती हैं.

वैसे तो पुरानी सरकारों के समय पर भी किसी भी तरह की जानकारी को बंद लिफाफे में कोर्ट को देने को लेकर कोर्ट ने कई बार असहमति जताई है. लेकिन अभी के समय में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ इसे लेकर बेहद सख़्त हैं. और वो इस बंदे लिफाफे में जानकारी देने पर हमेशा ही असहमति जताते रहे हैं. माना ये जाता है कि बंद लिफाफे में जानकारी देने से मीडिया और मीडिया के जरिए जनता तक जो बातें पहुंचनी चाहिए वो नहीं पहुंच पाती. 

ऊपर से कई मामलों में पीड़ित पक्ष को बंद लिफाफे वाली जानकारी का नुकसान होता है. वजह ये होती है कि पीड़ित पक्ष को पता ही नहीं होता कि बंद लिफाफे में उसके बारे में क्या कहा गया है. जैसे केरल हाई कोर्ट को बंद लिफाफे में चैनल वन के बारे में जो जानकारी दी गई थी उसके बारे में चैनल वन को कुछ पता ही नहीं होगा. 

बंद लिफाफे के कल्चर पर सवाल

वैसे तो बंद लिफाफे का कल्चर अपने आप में अलग टॉपिक है. लेकिन चैनल वन के ताज़ा मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने बंद लिफाफे के चलने पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. बंद लिफाफे के कल्चर पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि इसकी वजह से पीड़ित पक्ष के अपील करने के अधिकार पर असर पड़ता है. 

ऐसे में बंद लिफाफे में दी गई जानकारी के खिलाफ अपना पक्ष रखना उनके लिए असंभव था. और फैसले उनके ख़िलाफ़ गया. इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जो भी प्रभावित पार्टी है उसे बंद लिफाफे के अंदर की जानकारी का पता होना चाहिए.

बंद लिफाफे के ट्रेंड को कम करने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर मामलों में बंद लिफाफे में दी जाने वाली जानकारी की अहमियत को नहीं नकारा. लेकिन इसके ट्रेंड को कम करने की बात कही है. 

बोलने की आजादी को लेकर क्या कहता है देश का कानून?

देश आजाद होने यानी 1947 के बाद जब संविधान बना, तो भारतीय नागरिकों को अनुच्छेद 19 में वो सारे अधिकार दे दिए गए, जिसके लिए उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी थी. संविधान में अनुच्छेद 19 से 22 तक कई सारे अधिकार दिए गए हैं. 

अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत देश के सभी नागरिकों को वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. अनुच्छेद 19 के ये अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही मिले हैं. अगर कोई बाहर का यानी विदेशी नागरिक है तो उसे ये अधिकार नहीं दिए गए हैं.

वाक और अभिव्यक्ति की आजादी को आसान भाषा में समझे तो एक भारतीय नागरिक इस देश में लिखकर, बोलकर, छापकर, इशारे से या किसी भी तरीके से अपने विचारों को व्यक्त कर सकता है. 

वहीं अनुच्छेद 19 (2) में उन नियमों के बारे में भी जानकारी दी गई है जब बोलने की आजादी को प्रतिबंधित किया जा सकता है. वो परिस्थितियां हैं-

- कुछ ऐसा नहीं बोला जाना चाहिए जिससे भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरा हो. राज्य की सुरक्षा को खतरा हो. पड़ोसी देश या विदेशी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बिगड़ने का खतरा हो, सार्वजनिक व्यवस्था के खराब होने का खतरा हो, शिष्टाचार या सदाचार के हित खराब हो, कोर्ट की अवमानना हो, किसी की मानहानि हो, अपराध को बढ़ावा मिलता हो.

पहले भी चैनल और प्रकाशन पर लगाए जा चुके हैं बैन

साल 1950:  मद्रास सरकार जो अब तमिलनाडु सरकार है ने साप्ताहिक मैग्जीन 'क्रॉस रोड्स' पर बैन लगा दिया था. कथित रूप से ये मैग्जीन तत्कालीन नेहरू सरकार की नीतियों की आलोचना करता था. हालांकि इस प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और बाद में इस प्रतिबंध को हटा दिया. 

सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध हटाने के आदेश के साथ कहा 'राज्य की सुरक्षा' की आड़ में कानून व्यवस्था को सही नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि ये प्रतिबंध न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी कुछ हद तक प्रतिबंध करता है.

साल 1950: एक अंग्रेजी मैगजीन ऑर्गनाइज़र पर भी इसी तरह का बैन लगाया गया था. उस वक्त दिल्ली के चीफ कमिश्नर ने इस मैगजीन में कुछ भी छपने से पहले अनुमति लेने की बात कही थी. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आदेश फ्री स्पीच के संवैधानिक आदर्श को प्रभावित करती है, छापने से पहले अनुमति लेना उसकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाती है.

हेट स्पीच के मामले पर भी सख्त हुई सुप्रीम कोर्ट 

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक और मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को नपुंसक तक कह दिया था.  कोर्ट का कहना है कि सरकार नपुंसक है और समय पर एक्शन नहीं लेती. हेट स्पीच के इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये तक कह दिया था कि अगर नफरती भाषणों पर रोक नहीं लग रही तो आख़िर सरकार के होने ना होने से क्या फर्क पड़ता है. 

क्या है मामला 

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी पर सवाल उठाया. बीते दिनों मुंबई में हुए हिंदू जन आक्रोश रैली के मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ ने राज्य सरकार को भटकार लगाई. उन्होंने कहा, ' महाराष्ट्र सरकार नपुंसक है और कुछ नहीं कर रही. शांत है, इसलिए सबकुछ हो रहा है. जस्टिस जोसेफ कहा कि कहा कि जिस वक्त राजनीति और धर्म को अलग कर दिया जाएगा है. यह सब समाप्त हो जाएगा. अगर राजनेता धर्म का इस्तेमाल बंद कर देंगे. ये सब बंद हो जाएगा.'

हेट स्पीच को आईपीसी में शामिल करने की पहल

हाल ही में भड़काऊ भाषण और हेट स्पीच को इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) के तहत शामिल करने की पहल की गई. गृह मंत्रालय ने इसके लिए कुछ प्रस्ताव पर विचार भी किया. लेकिन यह अभी भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. दरअसल गृह मंत्रालय ने हेट स्पीच पर अंकुश लगाने और इसे सजा दिलाने का प्रावधान भले ही बनाने की पहल की हो लेकिन इसके लिए रास्ता आसान नहीं है. सबसे बड़ी चुनौती जो कमिटी के सामने आएगी वह यह कि आखिर हेट स्पीच को परिभाषित कैसे किया जाए. ऐसे कई मसले अभी देश की अलग-अलग अदालतों में भी हैं.


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