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31 March 2023: दिन की पांच बड़ी ख़बरें 'Top 5 News Of The Day

 1. इंदौर हादसे में अब तक 36 लोगों की मौत, मंदिर ट्रस्ट पर FIR दर्ज

मध्यप्रदेश के इंदौर में गुरुवार को हुए हादसे में बावड़ी से अब तक 36 शव निकाले जा चुके हैं. वहीं सर्च ऑपरेशन लगातार जारी है. इंदौर संभाग के आयुक्त ने बताया है कि NDRF के बाद सेना ने भी मोर्चा संभाल लिया है. रात में बावड़ी से 20 लाशें निकाली गईं. रामनवमी के दिन गुरुवार को दिन में लगभग 11:30 बजे ये हादसा हुआ था, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया. इस हादसे में एक दो नहीं बल्कि अब तक 36 जानें जा चुकी हैं.

इंदौर हादसे को लेकर श्री बालेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं पूर्व पार्षद सेवाराम गलानी और सचिव श्रीकांत पटेल और कुमार सबनानी के खिलाफ धारा 304 के तहत एफआईआर (FIR) दर्ज की गई है. इंदौर पुलिस कमिश्नर मकरंद देउसकर ने कहा कि इस मामले में न्यायिक जांच के आदेश हो गए हैं, इसलिए अभी किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है.

रेस्क्यू ऑपरेशन में एनडीआरएफ की 140 लोगों की टीम जुटी हुई है, जिसमें 15 जवान एनडीआरएफ के 50 जवान एसडीआरएफ और 75 जवान आर्मी के मिलकर रेस्क्यू ऑपरेशन चला रहे हैं. इंदौर जिले के महू आर्मी हेडक्वार्टर से आर्मी जवानों का दल भी रात में घटनास्थल पर पहुंचा. आर्मी के मौके पर पहुंचने के बाद लाशों का निकलने की गति तेज हुई. जिसमें पूरी रात ऑपरेशन चलाने के बाद 20 शव निकाले गए.

2.भाषा पर विवाद पुराना, दही तो बहाना

फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी FSSAI ने एक आदेश जारी किया. ये आदेश था दही के पैकेट पर 'दही' शब्द का ही इस्तेमाल करने का. इसी पर बवाल हो गया. इस बवाल के बीच जानना जरूरी है कि क्योंकि दक्षिण के राज्यों में हिंदी को लेकर इतना विरोध होता है? और हिंदी राजभाषा क्यों नहीं बन सकी?

दक्षिण भारत में 'हिंदी भाषा' के इस्तेमाल को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई. दक्षिण के राज्य अक्सर केंद्र सरकार पर हिंदी 'थोपने' का इल्जाम लगाते रहते हैं. 

अब 'दही' के नाम को लेकर विवाद बढ़ गया. विवाद की शुरुआत तब हुई जब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी FSSAI ने एक आदेश जारी किया. ये आदेश था दही के पैकेट पर 'दही' शब्द का ही इस्तेमाल करने का. इसी पर बवाल हो गया. 

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने कहा, 'हिंदी थोंपने की जिद अब इस हद तक पहुंच गई है कि अब वो हमें दही के पैकेट पर हिंदी का लेबल लगाने का निर्देश दे रहे हैं. हमारे अपने राज्यों में तमिल और कन्नड़ हटाने को कह रहे हैं.'

विवाद बढ़ा तो FSSAI ने अपना आदेश वापस ले लिया. इसमें लिखा कि पैकेट पर 'कर्ड' के साथ तमिल और कन्नड़ भाषा के स्थानीय शब्द जैसे 'मोसरू' और 'तायिर' को ब्रैकेट में इस्तेमाल किया जा सकता है.

दक्षिण के राज्यों में 'हिंदी' को लेकर विवाद नया नहीं है. ये काफी पुराना है. वहां के नेता अक्सर जबरन हिंदी थोंपने का इल्जाम लगाते रहे हैं.  इसे ऐसे समझिए कि आजादी के बाद जब हिंदी को राजभाषा बनाने पर बहस चल रही थी, तब तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद सीएन अन्नादुरई ने संसद में कहा था, 'ऐसा दावा किया जाता है कि हिंदी आम भाषा होनी चाहिए, क्योंकि इसे बहुत बड़ी आबादी बोलती है. तो फिर हम बाघ को राष्ट्रीय पशु क्यों मानते हैं, जबकि चूहों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है? और मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी क्यों है जबकि कौवे हर जगह हैं?'

हिंदी के इस्तेमाल को लेकर दोनों पक्षों के अलग-अलग दावे रहते हैं. इसके पक्ष में रहने वालों का तर्क है कि चूंकि भारत की एक बड़ी आबादी हिंदी का इस्तेमाल करती है, इसलिए इसे ही राजभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए. जबकि, इसके विरोध में तर्क दिया जाता है कि जिस तरह से भारतीय दूसरी भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं, हिंदी भी उन्हीं में से एक भाषा है.

ये भाषा का लफड़ा कैसे शुरू हुआ?

1947 में जब भारत को आजादी मिली तो देश में 500 से ज्यादा रियासतें थीं. सबसे पहला काम इन सब रियासतों को एक करना था और भारत को गणराज्य बनाना था. दूसरी ओर राज्यों का गठन करने की तैयारी भी शुरू हो गई थी. इस बीच भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग जोर पकड़ने लगी. हालांकि, ये मांग आजादी से पहले से ही चली आ रही थी. 1920 में नागपुर में जब कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तब पार्टी ने तेलुगू, कन्नड़ और मराठी भाषाई जनता के दबाव में आकर इस मांग को मान लिया था. आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन को लेकर सबसे पहले एसके धर आयोग का गठन हुआ. आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया और इसे देशहित के खिलाफ बताया. आयोग ने सिफारिश की कि भाषा की बजाय प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्य बनाए जाएं.

धर आयोग की सिफारिशों का विरोध हुआ. फिर बना जेवीपी आयोग. यानी जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया की समिति. इस आयोग ने भी भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन विरोध किया, लेकिन साथ ही ये भी सिफारिश की कि जनता की भावना का सम्मान करते हुए इस मांग पर विचार किया जाना चाहिए.

जेवीपी आयोग की रिपोर्ट आने के बाद मद्रास राज्य के तेलुगू भाषियों ने पोट्टी श्रीरामुल्लू के नेतृत्व में आंदोलन शुरू कर दिया. श्रीरामुल्लू आमरण अनशन पर बैठ गए और 56 दिन बाद उनका निधन हो गया. इससे आंदोलन और तेज हो गया. श्रीरामुल्लू तेलुगू भाषियों के लिए आंध्र प्रदेश राज्य की मांग कर रहे थे. उनके निधन के बाद और दूसरे राज्यों में भी भाषाई आधार पर आंदोलन शुरू हो गए.इस घटना के बाद फजल अली आयोग का गठन हुआ. इसमें फजल अली के अलावा केएम पाणिक्कर और एचएन कुंजरू भी शामिल थे. आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की. इसने सुझाव दिया कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए. लेकिन इसने 'एक राज्य, एक भाषा' के सिद्धांत को खारिज कर दिया. 

3. प्रियंका चोपड़ा के बाद शेखर सुमन ने लगाया गैंगअप का आरोप

प्रियंका को सपोर्ट करते हुए शेखर सुमन ने भी कुछ खुलासे किए हैं, जिसमें उन्होंने बताया है कि बॉलीवुड में कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने उनके और बेटे अध्ययन सुमन के खिलाफ गैंगअप किया. न जाने कितने प्रोजेक्ट्स से दोनों को साइडलाइन कराया.

कुछ दिनों पहले ग्लोबल स्टार प्रियंका चोपड़ा ने बॉलीवुड इंडस्ट्री को लेकर शॉकिंग खुलासे किए थे. जहां उन्होंने बताया था कि किस तरह सभी ने मिलकर उनके खिलाफ गैंगअप किया और जब फिल्में लगातार बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हुईं तो उन्हें लोग कहने लगे कि उनका करियर खत्म हो गया है. इसके बाद प्रियंका ने जो किया, वह अपने आप में इतिहास बन गया है. अब प्रियंका को सपोर्ट करते हुए शेखर सुमन ने भी कुछ खुलासे किए हैं, जिसमें उन्होंने बताया है कि बॉलीवुड में कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने उनके और बेटे अध्ययन सुमन के खिलाफ गैंगअप किया. न जाने कितने प्रोजेक्ट्स से दोनों को साइडलाइन कराया.

शेखर सुमन ने ट्वीट कर लिखा, "मैं इंडस्ट्री में करीब 4 ऐसे लोगों को जानता हूं, जिन्होंने मुझे और अध्ययन को न जाने कितने प्रोजेक्ट्स से निकालने के लिए गैंगअप किया. और मैं यह बात सच्चाई के साथ आप सभी से कह रहा हूं. इन 'गैंगस्टर्स' के अंदर कोई इंसानियत नहीं है और यह एक सांप से भी ज्यादा जहरीले लोग हैं. मैं सिर्फ एक बात में यकीन रखता हूं कि आप सच्चाई से भाग नहीं सकते. आप दूसरों के लिए परेशानियां जरूर खड़ी कर सकते हैं, पर उन्हें सक्सेसफुल होने से रोक नहीं सकते."

4. पीएम मोदी की डिग्री मांगे जाने पर HC ने अरविंद केजरीवाल पर लगाया जुर्माना

प्रधानमंत्री की डिग्री मांगे जाने के मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया. हाई कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें गुजरात यूनिवर्सिटी को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया गया था.

जस्टिस बीरेन वैष्णव ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को उनकी ग्रेजुएशन की डिग्री प्रमाणपत्र देने की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. सीएम ने पीएम के डिग्री प्रमाण पत्र का विवरण मांगा था.

हाई कोर्ट के फैसले के बाद सीएम अरविंद केजरीवल ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ''क्या देश को ये जानने का भी अधिकार नहीं है कि उनके PM कितना पढ़े हैं? कोर्ट में इन्होंने डिग्री दिखाए जाने का ज़बरदस्त विरोध किया। क्यों? और उनकी डिग्री देखने की माँग करने वालों पर जुर्माना लगा दिया जायेगा? ये क्या हो रहा है? अनपढ़ या कम पढ़े लिखे PM देश के लिए बेहद ख़तरनाक हैं.''

क्या है मामला?

बता दें कि गुजरात यूनिवर्सिटी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरटीआई कानून के तहत पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उपलब्ध कराने के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था.

साल 2016 के अप्रैल में तत्कालीन सीआईसी एम श्रीधर आचार्युलु ने दिल्ली यूनिवर्सिटी और गुजरात यूनिवर्सिटी को पीएम मोदी को दी डिग्रियों के बारे में सीएम केजरीवाल को जानकारी देने का निर्देश दिया था. इसके तीन महीने बाद गुजरात हाई कोर्ट ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी, जब यूनिवर्सिटी ने उस आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की.

सीआईसी का यह आदेश सीएम केजरीवाल की तरफ से आचार्युलु को लिखे गए पत्र के बाद आया था, जिसमें कहा गया है कि उन्हें सरकारी रिकॉर्ड को सार्वजनिक किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है और आश्चर्य है कि आयोग पीएण मोदी की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी को छिपाना क्यों चाहता है?

5. सीधे आंच पर रोटी पकाने से सेहत को पहुंच सकता है नुकसान?

रोटी या चपाती भारतीय खाने का अहम हिस्सा है, जिसे लगभग सभी मील्स में जरूर खाया जाता है। रोटी को आमतौर पर तवे पर कुछ देर सेका जाता है और फिर सीधे चूल्हे की आंच पर चिमटे की मदद से पूरी तरह से पकाया जाता है। ऐसी कुछ रिसर्च हैं, जो बताती हैं कि तेज आंच पर खाना पकाने के तरीके से हेट्रोसाइक्लिक अमाइन्स (HCAs) और पॉलीसाइक्लिक अरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स (PAHs) का उत्पादन होता है, जो जाने माने कार्सीनोजन्स हैं। आइए जानें कि नई रिसर्च रोटी पकाने के इस तरीके के बारे में क्या कहती है।

रोटी पर हुआ नया शोध

पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी जर्नल में प्रकाशित हुई यह नई रिसर्च के अनुसार, नैचुरल गैस चूल्हा और गैस स्टोव्ज से कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सूक्ष्म कण पदार्थ निकलते हैं, जिन्हें WHO सेहत के लिए सुरक्षित नहीं मानता। यह सभी पॉल्यूटेंट्स श्वसन और दिल से जुड़ी बीमारियों के साथ कई तरह के कैंसर की वजह भी बनते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, न्यूट्रीशन एंड कैंसर जर्नल में प्रकाशित हुई एक दूसरी स्टडी बताती है कि तेज आंच पर खाना पकाने से कार्सीनोजन्स प्रोड्यूस होते हैं। इसलिए हमें चपाती को सीधे गैस की आंच पर पकाने के बारे में सोचना होगा।

तवे पर बनने वाली रोटी

रोटी को पकाते वक्त कई लोग तवे पर रखी रोटी को किसी कपड़े से दबाते हैं, इससे रोटी सभी तरफ से पक जाती है और इसे सीधे गैस की आंच पर भी नहीं रखना पड़ता। हालांकि, जब से चिमटा आया है, तब से लोग आंधी रोटी तवे पर पकाते हैं और बाकी को सीधे आंच पर सेकते हैं। इससे रोटी जल्दी भी बन जाती है।

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