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20 February 2023: दिन की पांच बड़ी ख़बरें 'Top 5 News Of The Day'

 1.क्या है पांडा डिप्लोमेसी, जिसके तहत अमेरिका और जापान जैसे देश चीन को अदा कर रहे हैं कर्ज



पांडा 1950 के दशक से चीन की विदेश नीति का हिस्सा रहे हैं. चीन 'पांडा कूटनीति' कार्यक्रम के तहत कई देशों को पांडा देता रहा है. चीन ने 1957 में यूएसएसआर को अपना पहला पांडा पिंग पिंग गिफ्ट के तौर पर दिया था. इसी तरह उत्तर कोरिया (1965), अमेरिका (1972), जापान (1972, 1980, 1982), फ्रांस (1973), ब्रिटेन, जर्मनी (1974) और मैक्सिको (1975) को भी चीन से पांडा मिले.

अब जापान ने चीन के तोहफे को वापस उसी के मुल्क भेज दिया गया है. ऐसा पहली बार नहीं है जब पांडा को वापस उसके मुल्क भेजा गया है. कुछ पांडा को खास तरह के चिड़ियाघर में रखने के बाद कई सालों बाद चीन वापस भेज दिया जाता है. आईये इसके पीछे की वजह समझते हैं.

चीन के बाहर के चिड़ियाघरों में रह रहे पांडा चीन के कूटनीति ऋण समझौतों के अधीन हैं. जिन चिड़ियाघरों में ऋण समझौते में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है , उन चिड़ियाघर से पांडा को वापस चीन भेजा जा रहा है. 

दूसरे देशों को पांडा देकर पैसे वसूलता है चीन

पांडा कूटनीति ( Panda diplomacy ) के तहत ही चीन दूसरे देशों को पांडा भेजता है.  चीन ने 1941 से 1984 तक दूसरे देशों को पांडा गिफ्ट किए. 1984 में नीति में बदलाव किया गया, जिसके तहत चीन से दूसरे देशों में आने वाला पांडा पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया.  

क्या ये नन्हे भालुओं पर चीन का ही हक है?

1984  में चीन ने दूसरे देशों को गिफ्ट के तौर पर पांडा देना बंद कर दिया. चीन इसके पीछे की वजह अपने देश से पांडा के लुप्त होने की वजह करार देता है. अभी चीन के जंगलों में लगभग 1,860 विशाल पांडा बचे हैं .  600 पांडा चीन के चिड़ियाघरों में कैद है. चीन जिन देशों को पांडा देता है उन्हें हर साल चीन को 1 पांडा के बदले 1 मिलियन की राशि देनी पड़ती है. ये पैसे पांडा संरक्षण परियोजनाओं की तरफ से दिए जाते हैं.

अगर चीन के बाहर दूसरे देश के चिड़ियाघरों में कोई पांडा पैदा होता है तो नए पांडा के लिए इन देशों को 400,000 राशि का भुगतान चीन को करना पड़ता है. पांडा कूटनीति के तहत कोई भी देश चीन से पांडा की खरीदारी नहीं कर सकता. इस तरह पांडा और उसके बच्चे जो दूसरे देशों में पैदा हो रहे हैं वो अभी भी चीन की संपत्ति बने हुए हैं.

 तो इस वजह से भारत में नहीं मिलते ये नन्हें और प्यारे भालू

 जापान ने चीन से साल 1972 में पहला पांडा लिया था. 2013 के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में कहा गया था पांडा को गिफ्ट के तौर पर दूसरे देशों को देना व्यापार सौदों के तहत सही साबित होता है. लेकिन अब चीन ने जापान के साथ अपने रिश्ते पर नाखुशी का इजहार करते हुए अपने पांडा को वापस बुला लिया है. पांडा रखने पर बड़ा कर्ज चीन को देना इसके अलावा रख- रखाव में एकस्ट्रा खर्च होना भी देशों के लिए एक बड़ा टास्क है, यही वजह है कि भारत जैसे विकासशील देशों में पांडा नहीं है. 

कई देश नन्हें भालूओं के बदले चीन को चुका रहे हैं बड़ी रकम

वहीं एशिया के बाहर के देश जैसे फ्रांस, स्पेन, अमेरिका, जैसे देश अपने चिड़ियाघरों में विशाल पांडा रखते हैं. इनमें से ज्यादातर चिड़ियाघरों में पांडा के बच्चे हैं जिन्हें रखने के लिए ये देश चीन को हर साल 400,000  देते हैं. 

इन देशों में सिर्फ बेबी पांडा ही क्यों ? 

पांडा कूटनीति के तहत जैसे ही बेबी पांडा बड़े होने लगते हैं उन्हें चीन वापस भेजना एग्रिमेंट का हिस्सा है.  इसके अलावा कई देशों में यह एक वित्तीय स्थिति भी मानी जाती है जहां के चिड़ियाघर फिर से ऋण शुल्क देने में असमर्थ होते हैं. 

तो क्या अमेरिका के पास भी नहीं है पांडा

अमेरिका के चिड़ियाघरों में पांडा देखने को मिलते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि ये अमेरिका की प्रॉपर्टी का हिस्सा है. अमेरिका के जू में दिखने वाले सभी पांडा दूसरे देशों की ही तरह चीन की प्रॉपर्टी हैं. 

चीन समय-समय पर कुछ देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए राजनयिक तोहफे के तौर पर पांडा गिफ्ट करता रहा है. लेकिन चीन का ये आईडिया काम नहीं कर पाया जब चीन पर पूंजीवादी रणनीति काबिज होने लगी. अब पांडा डिप्लोमेसी के तहत ही चीन सभी देशों को पांडा दे रहा है.

कुल मिलाकर कहें तो ये कहना होगा कि पांडा डिप्लोमेसी के तहत ही कोई भी देश भारी रकम अदा करने के बाद भी इन भालूओं पर मालिकाना हक नहीं जता सकता, और चीन ही इन नन्हें भालूओं का मालिक बना हुआ है दूसरे देश चीन को सिर्फ कर्ज अदा कर रहे हैं. 

अमेरिका के स्मिथसोनियन नेशनल चिड़ियाघर ( Smithsonian National Zoo) चिड़ियाघर अटलांटा (Zoo Atlanta) सैन डिएगो चिड़ियाघर (San Diego Zoo) में पाए जाने वाले सभी पांडाओं पर मालिकाना हक चीन का ही है. दूसरे देशों की तरह अमेरिका चीनी सरकार को शुल्क देता है.

2019 में पांडा 'बेई बेई ' अमेरिका से चीन भेजा गया था

वाशिंगटन के राष्ट्रीय चिड़ियाघर में पांडा 'बेई बेई ' साल 2019 में चार साल का हो गया. चार साल के पांडा जवान माने जाते हैं और वो प्रजनन कर सकते हैं इसलिए पांडा बेई बेई को चीन वापस भेज दिया गया. इस तरह चीन काफी लंबे समय से पांडा को राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है.

शुरूआत में चीन ने अमेरिका से भालुओं के बदले नहीं लिए थे टैक्स

चीनी सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका की तरफ से मिलने वाली मदद के लिए 1941 में न्यूयॉर्क के ब्रोंक्स चिड़ियाघर में दो पांडा भेजे थे. 

जब राष्ट्रपति निक्सन और उनकी पत्नी ने 1972 में चीन का दौरा किया, तो पैट निक्सन ने चीनी प्रधान मंत्री से कहा कि उन्हें पांडा से बहुत प्यार है. जब पैट निक्सन चीन से अपने मुल्क अमेरिका लौटने लगे तो चीन की तरफ से उन्हें  दो पांडा गिफ्ट के तौर पर  मिले. जिनका नाम हिंग-हिंग और लिंग-लिंग था. ये दोनों ही पांडा के बदले अमेरिका चीन को किसी तरह का कोई ऋण अदा नहीं कर रहा था. ये दोनों जोड़े 1990 में मर गए.

मलेशिया भी चीन को लौटा चुका है पांडा

2019  में मलेशियाई सरकार ने अपने दो वयस्क पांडा को चीन वापस भेजा था. तत्कालीन प्रधान मंत्री नजीब रजाक ने  2014 में चीन के साथ पांडा डिप्लोमेसी पर हस्ताक्षर किए थे. जिसके तहत मलेशिया ने 2024 तक भालुओं को किराए पर लेने के लिए चीन को हर साल  1 मिलियन का भुगतान करने पर सहमति जताई थी. 

अलग-अलग देशों से चीन ने पांडा डिप्लोमेसी की शुरुआत कैसे की

सांतवी शताब्दी के दौर में चीन की महारानी वू  ने जापान में दो पांडा भेजे थे. माओ त्से तुंग ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. माओ त्से तुंग चीन में 1966 में हुई सांस्कृतिक घोषणा के अभिकल्पकार थे और चीनी साम्यवादी पार्टी के सह-संस्थापक थे. चीन में लंबे खिचे गृह युद्ध के दौरान उन्होंने सैन्य रणनीति मे अपनी महारत को दुनिया के सामने साबित किया.

शीत युद्ध के दौरान रूस और उत्तर कोरिया को पांडा दिए गए थे, और अमेरिका को 1972 में राष्ट्रपति निक्सन की चीन यात्रा के बाद एक जोड़ी पांडा भेजवाया गया. इस तरह चीन अमेरिका जैसी विदेशी ताकत और कई देशों को अपना राष्ट्रीय पशु देकर राजनीतिक संबंधों में सुधार करने में कामयाब हुआ. लेकिन जैसे-जैसे चीन तेजी से पूंजीवादी होता गया, चीन ने पांडा को भी एक आर्थिक उपकरण बना लिया. 

पूंजीवादी रणनीति के बाद चीन ने गिफ्ट के बजाए अपने पांडा को ऋण के बदले देना शुरू किया. 1980 के दशक में चीन को  छोटे भालुओं के बदले बड़े देशों से प्रति माह  50,000  ऋण मिलने लगा, और पांडा की कोई भी संतान अभी तक चीन की संपत्ति बनी हुई है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कैथलीन बकिंघम और पॉल जेप्सन के मुताबिक  पांडा के लिए दिया जाने वाला ऋण स्कॉटलैंड, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों और चीन के बीच गहरे और ज्यादा भरोसेमंद रिश्ते बनाने में मददगार साबित हो रहे हैं.  

2. मुंद्रा पोर्ट पर बरामद 3000 किलो हेरोइन मामले में NIA ने दाखिल की चार्जशीट


एनआईए ने सोमवार (20 फरवरी) को गुजरात (Gujarat) के मुंद्रा बंदरगाह पर करीब 3000 किलोग्राम हेरोइन की जब्ती से संबंधित मामले में दूसरी सप्लीमेंट्री चार्ज शीट दायर की है. एनआईए (NIA) ने कहा कि ये खेप अफगानिस्तान (Afghanistan) से बंदर अब्बास, ईरान (Iran) के माध्यम से भेजी गई थी. एनआईए ने कहा कि ये पाया गया कि अफगानिस्तान से भारत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्गों के माध्यम से हेरोइन की अवैध खेप की तस्करी के लिए एक संगठित आपराधिक साजिश है. जांच के अनुसार, हेरोइन की बिक्री से मिलने वाला धन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के गुर्गों को आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रदान किया गया था. 

एनआईए ने चार्ज शीट में क्या कहा?

एजेंसी ने कहा कि व्हाइट क्लब (पहले प्लेबॉय के नाम से जाना जाता था), जज़्बा और आरएसवीपी सहित दिल्ली में लोकप्रिय नाइट क्लबों के मालिक हरप्रीत सिंह उर्फ कबीर तलवार, जिसे पिछले साल अगस्त में गिरफ्तार किया गया था, वो भारत में अफगान हेरोइन की तस्करी के लिए कमर्शियल ट्रेड रूट का गलत इस्तेमाल करने के लिए दुबई गया था. एजेंसी ने कहा है कि वो तस्करी के लिए अपनी कंपनियों का उपयोग कर रहा था. चार्ज शीट में इन लोगों के नाम

एनआईए ने सोमवार को अहमदाबाद की एक विशेष अदालत के समक्ष पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर स्थित ऑपरेटिव मोहम्मद इकबाल अवान, दुबई स्थित वित्येश कोसर उर्फ ​​राजू दुबई और तलवार सहित 22 व्यक्तियों और कंपनियों के खिलाफ अपना आरोप पत्र दायर किया. 

सितंबर 2021 में पकड़ी थी हेरोइन की खेप

एनआईए ने इस मामले में पिछले साल 14 मार्च को 16 व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था. इसके बाद 29 अगस्त 2022 को 9 नौ आरोपियों के खिलाफ पहली सप्लीमेंट्री चार्ज शीट दायक की थी. 13 सितंबर, 2021 को मुंद्रा बंदरगाह (Mundra Port) पर 2,988 किलोग्राम अफगान हेरोइन की खेप जब्त की गई थी.

3. नीतीश से अलग हुए उपेंद्र कुशवाहा, बनाएंगे नई पार्टी 

बिहार में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा की तनातनी ने नया मोड़ ले लिया है। आखिरकार, बगावती तेवर अपनाए उपेंद्र कुशवाहा ने नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। कुशवाहा ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस किया, जिसमें उन्होंने कहा कि वे आज से नई शुरुआत करने जा रहे हैं। 

मीडिया से बातचीत करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने बताया कि वे नई पार्टी 'राष्ट्रीय लोक जनता दल' बनाने जा रहे हैं। कुशवाहा ने कहा कि बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को राज्य चलाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। जॉर्ज फर्नाडिंस के कारण नीतीश कुमार पार्टी के मुखिया बने थे। उस समय बिहार की जनता तबाह थी। बिहार की जनता को उस हालात से निकालने के लिए हमने 10-12 साल तक संघर्ष किया। बिहार को खौफनाक मंजर से निकालने में पूरी ताकत लगा दी।कुशवाहा ने आगे नीतीश कुमार की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि उस समय नीतीश जी ने बहुत अच्छा काम किया था लेकिन अंत भला तो सब भला होता है। बाद में अंत भला नहीं हुआ। कुछ को छोड़कर जद (यू) में हर कोई चिंता व्यक्त कर रहा था। निर्वाचित सहयोगियों के साथ बैठक हुई और निर्णय लिया गया है। नीतीश कुमार ने शुरुआत में अच्छा किया लेकिन अंत में जिस रास्ते पर उन्होंने चलना शुरू किया है, वह उनके और बिहार के लिए बुरा है। उन्होंने एमएससी पद से भी इस्तीफा देने की घोषणा की है।

इससे पहले, कुशवाहा ने पटना में बैठक बुलाई थी। जिसमें जदयू से जुड़े नेता और कार्यकर्ता शामिल हुए। दो दिनों तक बैठक चली। यह बैठक पटना के सिन्हा लाइब्रेरी परिसर में हुई। बैठक में जितेंद्र नाथ, सुभाष कुशवाहा, माधव आनंद, विधान पार्षद रामेश्वर महतो और रेखा गुप्ता को कुशवाहा ने कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी दी थी। सभी लोग पूर्व में जदयू को पदाधिकारी रह चुके हैं।

इस बैठक के शुरू होते ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि उपेंद्र कुशवाहा जदयू से अपनी राहें अलग करने वाले हैं। आखिरकार, सोमवार को उन्होंने घोषणा भी कर दी।

4.कश्मीर से हटा ली जाएगी सेना? जानिए क्या है भारत सरकार का पूरा प्लान

Withdraw Of Army: केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के करीब साढ़े तीन साल बाद अब केंद्रशासित प्रदेशों से सेना हटाए जाने पर विचार कर रही है. विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में बड़े स्तर पर सुरक्षा बलों की तैनाती की गई थी. वहीं, खबर है कि अब केंद्र सरकार घाटी के अंदरूनी इलाकों से भारतीय सेना को धीरे-धीरे हटाने के प्रस्ताव के बारे में सोच रही है. अगर ऐसा होता है, तो भारतीय सेना की उपस्थिति सिर्फ लाइन ऑफ कंट्रोल तक ही सीमित हो जाएगी. 

इंडियन एक्सप्रेस की खबर में सुरक्षा बलों के अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया है कि कश्मीर के भीतरी इलाकों से सेना हटाने के प्रस्ताव पर दो साल से चर्चा हो रही है. रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, सुरक्षा बलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस के शामिल होने से इस बातचीत में तेजी आई है. घाटी में कानून-व्यवस्था और आतंकरोधी अभियानों के लिए भारतीय सेना के साथ तैनात की गई सीआरपीएफ को हटाया जा सकता है.

जल्द आ सकता है फैसला!

रिपोर्ट के अनुसार, सेना के अधिकारी ने कहा कि मामला में मंत्रालय स्तर पर बातचीत की जा रही है और जल्द ही होना संभव हो सकता है. एक तरह से फैसला लिया जा चुका है और अब केवल इस बात का इंतजार है कि ये कब से शुरू होगा. हालांकि, उन्होंने कहा कि ये फैसला सरकार को ही करना है. उन्होंने कहा कि जब तक कोई फैसला नहीं आता है, तब तक कोई भी हलचल नजर नहीं आएगी.

जम्मू-कश्मीर में कितनी है सैन्य तैनाती?

अधिकारियों के अनुसार, पूरे जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना ने करीब 1.3 लाख सैनिकों की तैनाती कर रखी है. जिनमें से करीब 80 हजार भारत की सीमाओं पर तैनात हैं. कश्मीर के भीतरी इलाकों में राष्ट्रीय राइफल्स के करीब 40 से 45 हजार जवान आतंकरोधी अभियान चलाते हैं. वहीं, सीआरपीएफ के पास करीब 60 हजार जवानों की ताकत है, जिनमें से 45 हजार कश्मीर घाटी में तैनात हैं. 83 हजार का आंकड़ा जम्मू-कश्मीर पुलिस का है. इसके अलावा सीएपीएफ की कुछ कंपनियां भी घाटी में हैं.

सेना की तैनाती से कम हुई आतंकी वारदातें

गृह मंत्रालय के मुताबिक, आर्टिकल 370 को हटाए जाने के बाद से आतंकी घटनाओं और सुरक्षा बलों की मौतों के आंकड़े 50 फीसदी कम हो गए हैं. पत्थरबाजी की घटनाएं खत्म हो चुकी हैं. भारतीय सेना की मौजूदगी से घाटी के भीतरी इलाकों में शांति व्यवस्था कायम हो सकी है. एक अन्य अधिकारी का कहना है कि आतंकरोधी अभियानों को चलाने का जिम्मा जम्मू-कश्मीर पुलिस को सौंपे जाने पर भी चर्चा की जा रही है

उन्होंने कहा कि अभी जम्मू-कश्मीर पुलिस इसके लिए पूरी तरह से तैयार नजर नहीं आती है और सेना की तरह काम करने के लिए उसकी कई जरूरतें हैं. भारतीय सेना को हटाने की स्थिति में जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ सीआरपीएफ को लगाने की योजना पर विचार किया जा रहा है. रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि कश्मीर के भीतरी इलाकों से सेना को चरणबद्ध तरीके से हटाने पर बातचीत की जा रही है. पूरी तरह से सेना को हटाए जाने का फैसला शुरुआती कदमों के बाद आए नतीजों के आधार पर ही लिया जाएगा.

5.Facebook और Insta की फ्री सर्विस बंद! ब्लू टिक के लिए हर माह देने होंगे इतने रुपये



सोशल मीडिया कंपनियों की तरफ से फ्री का धंधा बंद किया जा रहा है। जहां कुछ वक्त पहले ट्विटर ने पेड ब्लू टिक सर्विस शुरू की थी। इसके लिए कंपनी प्रतिमाह 11 से 14 डॉलर चार्ज वसूल रही है। अब ट्विटर की राह पर मेटा कंपनी चल निकली है। मेटा की तरफ से ऐलान किया गया है कि वो फेसबुक और इंस्टाग्राम ब्लू टिक के लिए चार्ज वसूलेगी। मतलब अगर आप फेसबुक या फिर इंस्टाग्राम पर प्रीमियम वेरिफिकेशन सर्विस चाहते हैं, तो आपके सब्सक्रिप्शन मॉडल पर आना होगा। मार्क जुकरबर्ग ने ऐलान किया कि वो मेटा ओन्ड फेसबुक और इंस्टाग्राम वेरिफाइड सर्विस के लिए वेब यूजर्स से हर माह 11.99 डॉलर और iOS यूजर्स से 14.99 डॉलर के हिसाब से चार्ज करेंगे। फिलहाल इस सर्विस को ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में शुरू किया गया है। ऐसी उम्मीद है कि जल्द देशों में फेसबुक और इंस्टाग्राम पेड सर्विस को लॉन्च कर दिया जाएगा। बता दें कि अभी तक यह सर्विस पूरी तरह से फ्री हुआ करती थी। जुकरबर्ग ने कहा कि यह एक सब्सक्रिप्शन सर्विस है।
इंस्टाग्राम और फेसबुक पेड सब्सक्रिप्शन मॉडल में यूजर्स को कुछ खास सर्विस ऑफर की जा सकती है। साथ ही एचडी वीडियो अपलोड करने के साथ ही कई अन्य सर्विस दी जा सकती है। बता दें कि अभी तक फेसबुक और इंस्टाग्राम पर मशहूर लोगों को ब्लू टिक वेरिफिकेशन दिया जाता था। इसमें क्रिएटर्स, कंपनियां, ब्रांड्स शामिल थे।


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