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4 March 2023: दिन की पांच बड़ी ख़बरें 'Top 5 News Of The

 1. एच3एन2 वायरस ने बढ़ाई चिंता, 6 लक्षणों को न करें नजरअंदाज

भारत के कई हिस्सों, खासकर दिल्ली-एनसीआर में इन दिनों इन्फ्लूएंजा ए के 'एच3एन2 वायरस' (H3N2 Virus) का प्रकोप तेजी से फैल रहा है। इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और मरीजों में तेज बुखार, खांसी और सांस से जुड़े लक्षण महसूस किये जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि यह वायरस केटेगरी के अन्य वायरस की तुलना में घातक है।ICMR के अनुसार, 15 दिसंबर के बाद से इसके मामले तेजी से बढ़े हैं। इसकी चपेट में आने वाले लोग जल्दी अस्पतालों में एडमिट हो रहे हैं। इसके लक्षण कोरोना वायरस की तरह हैं, जो 2 से 3 हफ्तों तक रह सकते हैं। इसके लक्षण गंभीर है लेकिन यह जानलेवा नहीं है।

पिछले कुछ हफ्तों में मौसम में बदलाव हुआ है। बदलते मौसम में खांसी और बुखार होना आम समस्या है। चिंता का विषय यह है कि लोग सामान्य खांसी-बुखार या फिर एच3एन2 वायरस से पैदा हुए लक्षणों के बीच अंतर को समझ नहीं पा रहे हैं। चलिए जानते हैं कि एच3एन2 वायरस की वजह से लक्षण पैदा हो रहे हैं, वो किस तरह पीड़ित को प्रभावित कर सकते हैं और आपको क्या करना चाहिए।

आईसीएमआर के मुताबिक, पिछले महीनों में H3N2 वायरस की चपेट में आए और अस्पताल में भर्ती मरीजों में 92% मरीजों में बुखार, 86% को खांसी, 27% को सांस फूलना, 16% को घरघराहट की समस्या थी। संस्था ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि 16% रोगियों को निमोनिया था और 6% को दौरे पड़ते थे। वायरस के कारण होने वाले सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन से पीड़ित लगभग 10% रोगियों को ऑक्सीजन और 7% को ICU देखभाल की आवश्यकता होती है।

बताया जा रहा है कि इस वायरस की चपेट में आने से आपको हाई ग्रेड फीवर हो सकता है जिसके साथ आपको कंपकपी भी हो सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकतर लोगों ने तेज बुखार महसूस किया।

इस वायरस की चपेट में आने से आपको बुखार के साथ लगातर खांसी भी महसूस हो सकती है। यह खांसी कई आम खांसी नहीं होती है बल्कि आपको परेशान कर सकती है। खांसी के साथ-साथ आपका गला बैठ सकता है और आवाज में परिवर्तन हो सकता है।


2. सेना ने चीन सीमा पर एक्टिविटी बढ़ाई:गलवान में घोड़ों के साथ पेट्रोलिंग कर रहे जवान

भारतीय सेना ने चीन बॉर्डर पर वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC पर निगरानी बढ़ा दी है। न्यूज एजेंसी के मुताबिक लद्दाख में तैनात सेना के जवान गलवान घाटी और आस पास के इलाकों में घोड़ों से पेट्रोलिंग कर रहे हैं। सामान ढोने के लिए खच्चरों को भी इन इलाकों में ले जाया जा रहा है।

इधर, सेना की कुछ तस्वीरें भी सामने आई हैं, जिसमें सैनिक गलवान इलाके में क्रिकेट और आइस हॉकी खेल रहे हैं। भारतीय सेना ने इन जगहों के नाम नहीं बताए हैं, लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि यह वही जगह है, जहां 15-16 जून 2020 की रात में भारत-चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी।

सेना ने कहा- हम असंभव को संभव बनाते हैं

गलवान घाटी में संघर्ष के बाद से ही दोनों देशों की सेनाएं अलर्ट हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि बेहद ऊंचाई वाले इन क्षेत्रों में तैनात सैनिक टुकड़ियां सर्दियों के दौरान कई गेम्स ऑर्गेनाइज करती हैं। इसे सैनिकों की फिटनेस बरकरार रखने की एक्सरसाइज बताया गया है।


नीचे दी गई तस्वीर भारतीय सेना की लेह स्थित 14वीं कोर ने शेयर की है। उन्होंने लिखा- पटियाला ब्रिगेड त्रिशूल डिवीजन ने पूरे उत्साह और शौर्य के साथ शून्य से नीचे के तापमान और बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्र में एक क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन किया। हम असंभव को संभव बनाते हैं।

3.  सड़क सुरक्षा की जगह मिली भद्दी गालियां, नवी मुंबई के ट्रैफिक बोर्ड का वीडियो हुआ वायरल

आमतौर पर गाडी चलते वक़्त बहुत काम ही बार होता है जब कोई सड़क सुरक्षा से जुड़े डिस्प्ले बोर्ड पर ध्यान देता होगा. लेकिन मुंबई के एक इलाके में तब वहां से गुजर रहे लोग बार बार मुड़कर डिस्प्ले बोर्ड देख रहे थे जब उस बोर्ड पर रोड सेफ्टी की जानकारी की जगह भद्दी भद्दी गालियां डिस्प्ले हो रही थी. यह घटना पाम बीच रोड के नेरुल खंड पर नवीं मुंबई नगर निगम (NMMC) की बताई जा रही हैं. यहाँ पर लगे हुए इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड पर अचानक से उस दिन गालियों भरी बातें डिस्प्ले हो रही थी. डिस्प्ले बोर्ड पर हिंदी में अपशब्द बोले जा रहे थे. उस पर मां की गाली दी जा रही थी. बताया जा रहा है कि इस बोर्ड पर केवल सड़क सुरक्षा से जुड़ा एक ही मैसेज डिस्प्ले होता था. ये बोर्ड चालकों को 60 किलोमीटर प्रति घंटा से गाड़ी चलने का संदेश देता है. उस समय जो भी वहां से गुजर रहा था वो उस पर लिखी बात को देख कर हैरान था. कई लोगों ने उस बोर्ड की वीडियो और तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर भी डाली.

प्रशासन का ढीलापन

सोशल मीडिया पर खबर ने तेजी पकड़ी. कई लोग इसकी लापरवाही को लेकर प्रशासन से सवाल कर रहे थे. लोगों ने सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर प्रशासन के ट्विटर अकाउंट को टैग भी किया. जैसे ही प्रशासन को इस घटना का पता चला, उसने उस डिस्प्ले बोर्ड में सप्लाई होने वाली बिजली कट की गई और डिस्प्ले बोर्ड को ऑफ किया गया. अब तक ये पता नहीं चल सका है कि यह बदतमीजी आखिर किसने की है. नवीं मुंबई नगर निगम से अब तक इस घटना को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. 

4. कलीजियम सिस्टम, CBI डायरेक्टर की नियुक्ति...क्यों चुनाव आयोग में नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अभी से जश्न ठीक नहीं

कुछ फैसले लोकतंत्र की जीत की तरह लगते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में क्रांतिकारी सुधार से जुड़ा सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी इनमें से एक है। कोर्ट ने साफ किया कि अब राष्ट्रपति सिर्फ सरकार की सलाह पर मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति नहीं कर सकेंगे। इसके बजाय अब प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) की सदस्यता वाली एक समिति रष्ट्रपति को सलाह देगी। इस तरह चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति से सरकार के नियंत्रण को खत्म करके कोर्ट ने एक पूरी तरह स्वतंत्र वॉचडॉग के जरिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने को सुनिश्चित किया है। लोकतंत्र जीता है।

लेकिन पिछले 73 सालों में संसद की तरफ से इसे लेकर कानून बनाने की अनिच्छा के मद्देनजर कोर्ट का इस तरीके से विधायिका के काम में हस्तक्षेप की वजह से लोकतंत्र को नुकसान भी हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 324 में एक सामान्य सा प्रावधान है- चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे तबतक जबतक कि संसद इसे लेकर कानून नहीं बनाती।

जहां तक कानून की बात है तो कोर्ट तब सही नहीं है जब ये कहता है कि इन शब्दों से संविधान बनाने वालों की मंशा स्पष्ट होती है कि वे चाहते थे कि इस तरह का कानून संसद बनाए, ये उसके लिए बाध्यकारी है। संविधान में कई दूसरी जगहों पर कानून बनाने के लिए संसद को स्पष्ट तौर पर आदेशित किया गया है (जो बाध्यकारी हैं) जैसे- आर्टिकल 35 जहां संसद को कहा गया है कि वह अस्पृश्यता (छूआछूत) से जुड़े अपराधों और बेगारी के खिलाफ कानून बनाए। संविधान बनाने वालों ने निश्चित तौर पर संसद से जवाबदेह होने की उम्मीद की है कि वह नियुक्ति की ऐसी प्रक्रिया स्थापित करे जो चुनाव आयोग की स्वतंत्रता की रक्षा करे। लेकिन उन्होंने जानबूझकर इसे आदेशित नहीं किया, बाध्यकारी नहीं किया।

इसके उलट, शायद संविधान बनाने वालों को अंदाजा होगा कि संसद को कानून बनाने में समय लग सकता है इसलिए उन्होंने खुद की उस तथाकथित वैक्युम को यह कहकर भर दिया कि जबतक ऐसा कानून नहीं बन जाता, तबतक नियुक्ति की शक्ति राष्ट्रपति के पास होगी। इस मामले में न्यायिक दखल की कहीं कोई वैधानिक जगह नहीं दिखती।

लेकिन संविधान को सिर्फ संसदीय शक्तियों के चार्टर के रूप में नहीं देखा जा सकता, यह कर्तव्यों का भी चार्टर है। कोर्ट को दखल देना चाहिए था या नहीं, ये अलग सवाल है। लेकिन इतना तो साफ है कि आर्टिकल 324 के तहत चुनाव आयोग में नियुक्तियों को लेकर पिछले सात दशकों में भी एक व्यापक कानून बनाने की अपनी ड्यूटी में संसद फेल हुई है।

कर्तव्य के निर्वहन में इस नाकामी के बावजूद कोर्ट संसद का पूर्ण सम्मान बरतती रही है और कानून बनाने की उसकी संप्रभु शक्तियों को स्वीकार किया है। यही वजह है कि उसने न तो चुनाव आयुक्तों को पद से हटाने के लिए कोई नया नियम तय किया और न ही कोई इंडिपेंडेंट सेक्रटेरियट का गठन किया, जिसकी याचिकाकर्ता ने मांग की थी, दलील दी थी। कोर्ट ने बस संसद से जरूरी बदलाव करने की 'जोरदार अपील' की है। नियुक्ति को लेकर कोर्ट ने नियम जरूर संशोधित किए लेकिन साथ में ये स्पष्ट भी किया कि ये तबतक ही लागू रहेगा जबतक कि संसद इस पर कानून नहीं बना लेती। सैद्धांतिक तौर पर कहें तो संसद इसी बजट सेशन में ही इस पर कानून बना सकती थी और कानून बनाने की अपनी संप्रभु शक्तियों और श्रेष्ठता साबित कर सकती थी। इस तरह से देखा जाए तो ये न तो ज्युडिशियल ऐक्टिविज्म है और न ही न्यायिक संयम जैसा कि कोर्ट के फैसले का इस तरह विश्लेषण किया जा रहा है। असल में ये ज्युडिशियल स्टेट्समैनशिप है।

5. CBI मुझे टॉर्चर कर रही है... सिसोदिया ने खुद जज से की शिकायत, फिर भी नहीं मिली बेल

मनीष सिसोदिया को राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट के आसपास बड़ी संख्या में स्थानीय पुलिस इसके अलावा अर्धसैनिक बलों की भी तैनाती की गई है। सीबीआई ने सिसोदिया की रिमांड तीन दिन के लिए बढ़ाने की मांग की है।

सिसोदिया की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट दयान कृष्णन ने रिमांड की मांग का विरोध किया। दलील दी कि सीबीआई रिमांड इस आधार पर नहीं मांग सकती कि हम आरोपी के कबूल करने का इंतजार बीकर रहा हैं। वह हर बार इस आधार पर रिमांड नहीं ले सकती कि सिसोदिया जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं।

मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर 10 मार्च को सुनवाई होगी। अदालत ने सीबीआई को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। सीबीआई द्वारा मांगी गई रिमांड पर कोर्ट थोड़ी देर में फैसला सुनाएगा।


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