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यूक्रेन-रूस विवाद में चीन क्यों रखता है मायने?

 


रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन के रुख की खूब चर्चा हो रही है। चीन ने खुलकर रूस का समर्थन किया है। लेकिन, उसके यूक्रेन के साथ भी मजबूत राजनयिक और व्यापारिक संबंध हैं। चीनी विदेश मंत्रालय ने तो रूस के खिलाफ लगे प्रतिबंधों को लेकर अमेरिका को जमकर खरी-खोटी सुनाई है। चीन का दावा है कि अमेरिका पूर्वी यूरोप में जारी तनाव की आड़ में भय और दहशत का माहौल बना रहा है। बड़ी बात यह भी है कि यूक्रेन से जारी तनाव के बीच फरवरी में ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन दौरे पर पहुंचे थे। उन्होंने इस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। जिसके बाद चीन ने यूक्रेन संकट को लेकर रूस का खुला समर्थन किया था। ऐसे में सवाल उठता है कि यूक्रेन रूस विवाद में चीन का क्या महत्व है। दूसरी ओर अमेरिका के कूटनीतिक तौर पर असफल होने की खूब चर्चा हो रही है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे और यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर लोगों के बीच अमेरिका के सुपरपावर होने का दंभ खत्म होता नजर आ रहा है।

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि चीन का पहला एयरक्राफ्ट कैरियर लियोनिंग को यूक्रेन से ही खरीदा था। चीन अपने युद्धपोतों के लिए गैस टरबाइन इंजन और विमानों के लिए जेट इंजन का आयात भी यूक्रेन से करता है। रूस और यूक्रेन दोनों देशों के लिए चीन कच्चे माल का सबसे बड़ा स्रोत भी है। चीन और यूक्रेन बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के जरिए रेलवे और पोर्ट के डेवलपमेंट से जुड़े कई प्रॉजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे हैं। चीन अपने सूअरों को खिलाने के लिए हर साल यूक्रेन से भारी मात्रा में मक्के की खरीदारी भी करता है। चीन के कुल मक्के के आयात का 90 फीसदी हिस्सा अकेले यूक्रेन से आता है।

एक साल पहले चीन ने यूक्रेन की विमान इंजन निर्माता कंपनी मोटर सिच पर कब्जा करने के लिए चाल भी चली थी। लेकिन, अमेरिका और रूस ने चीन के इस प्लान को फेल कर दिया था। मोटर सिच दुनिया की जानी मानी विमान इंजन निर्माता कंपनी है। इस कंपनी ने रूसी एमआई हेलिकॉप्टर, एंटोनोव एयरक्राफ्ट सहित कई विमानों के लिए इंजन बनाए हैं। इस कंपनी के बने इंजनों को भारतीय वायुसेना भी अपने हेलिकॉप्टरों और एयरक्राफ्ट में इस्तेमाल करती है। चीन अपने जे-20 स्टील्थ फाइटर जेट को ताकतवर बनाने के लिए एक शक्तिशाली इंजन की तलाश कर रहा था। चूंकि, लड़ाकू विमानों के इंजन की तकनीकी बहुत जटिल होती है और चीन के पास ऐसा कोई इंजन नहीं है जो जे-20 को उतनी ताकत दे सके जितना ड्रैगन चाहता है। इसके लिए चीन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साजिश रची थी।

चीन और रूस के बीच भी काफी घनिष्ठ संबंध हैं। दोनों देश अमेरिका को खतरे के रूप में देखते हैं। यही कारण है कि चीन और रूस पिछले कुछ साल में एक दूसरे के काफी करीब आए हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों की काट खोजने के लिए दोनों देशों ने अपने व्यापार को भी काफी बढ़ाया है। पिछले साल चीन और रूस के बीच कुल 140 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था। रूस के कुल निर्यात का 70 फीसदी हिस्सा तेल-गैस और खनिज से जुड़ा हुआ है। हाल में ही पुतिन के रूस दौरे के समय बीजिंग ने मॉस्को से बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस खरीदने का समझौता भी किया है। अकेले दोनों देशों के बीच गैस का व्यापार 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा का है। ऐसे में कहा जा रहा है कि रूस पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण यूरोपीय देशों को गैस न बेचकर अब एशियाई देशों में नए खरीदार ढूंढ रहा है।

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